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पूरे चांद को / दीपा मिश्रा

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पूरे चांद को
अधूरे मन से देखा मैंने
चांद मुस्कुरा रहा था
मैं घबरा रही थी
उसकी चांदनी हर तरफ
फैली बिखरी पड़ी थी
मैं खुद में सिमटी
सिकुड़ी खड़ी थी
चांद ने कहा
"खुश होले तू भी जरा"
मैंने कहा "वजह तो बताओ"
चांद बोला "मैं हूं ना"
जी मैं आया नाचने लगूं
चाँद तो मिल गया मुझे
पर रुक गई
खुद से पूछा
"क्या मुझे इसी चांद की तमन्ना थी "
दिल ने कहा
"नहीं तेरी मंजिल कुछ और है
चांद के लिए नहीं बनी तू"
मैंने पूछा "फिर कहां है मेरी मंजिल "उसने कहा
"तुझे अपनी मंजिल की तलाश खुद करनी होगी
इस चांद पर भरोसा मत कर
आज है कल गुम हो जाएगा अपना आसमां
अपना चांद खुद ढूंढना सीख"
सामने देखा चांद भी
मुस्कुरा रहा था
जैसे उसने भी मेरे
दिल की बात पर
मोहर लगा दी हो
एक बार फिर
पूरे चांद को पूरे मन से देखा मैंने