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पूस आया / चिन्तामणि जोशी

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सुन बे
सपनों के सौदागर

रात के अंतिम पहर
मढैया की दीवारों पर सनसनाती
तीखी हवा की थपक से
वह उठ गई है अचकचा कर

उधड़ी छत पर तनी चादर
टाट वाली झटक डाली
फैला रही है
पेट में घुटने घुसेड़े
तीनों के तन पर

पलायित है कंत
लाने को वसंत
प्राण की लेने परीक्षा
इस बरस भी पूस आया
सबसे पहले
उसी के घर।