पूस / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
हरखेँ मुदा बिआहि लेलक अछि
दू दू टा बहु मूस
सोनक रङ मे बाघ रङल छल
सकल गृहस्थक मोन टङल छल
मनक कल्पना कोबर घर सन
रंग बिरंगेँ रङल ढङल छल
कटल बाध, पलटल दुख दीनक,
दिन लगइछ मनहूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
नार पड़ल नारायण तर मे,
गोनड़ि बनि गोविन्द उमर मे,
शिशिरक हिम-शर-विद्ध जनक
रक्षा करइत अछि सगर-नगर मे,
गनल-गुथल-जन ओढ़ि रहल छथि
शाल दोशाला धूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
दिनकर - कर - करवालेँ मुरुछल
प्राण त्याग करबा लय निहुँछल
शत-शत शत-दल, गलल सकल दल
नीर - भरल नयने दूर्बादल
अपलक देखि रहल पुनि पछबा
सिहकि तकर मुँह दूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
कोँढ़ बनल अछि केरा भालरि
जाड़-ठार कैलक सबकेँ सरि
सिरसिरबय ई शिशिर अभागल
त्राहि त्राहि करइछ सब सबतरि
कैलक ई पँसाड़ सम्हरि कय
की कोठा, की फूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
मनहिं महाजन जोड़ि रहल छथि
तरि तिलकोड़ा तोंड़ि रहल छथि
नरक जाय हित अपनहिं हाथेँ
बड़का खत्ता कोड़ि रहल छथि
लेब सवैया, उतरत ड्यौंढ़ा
बौआ मुँह मे टूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस
दिवस सुटुकि बनला दोहा सन
रातुक पेट बढ़ल कोहा सन
उदयाचल पर रविक दीप्त-मुख
लगइत छनि धीपल लोहा सन
रातुक पलरा लऽत भेल आ’
दिवसक पलरा झूस
पलटि पुनि पहुँचल पापी पूस