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पृथ्वी / मालचंद तिवाड़ी
Kavita Kosh से
बळ नीं
जको खींचै
फळ नै
रूंख सूं।
ओळ्यूं है पृथ्वी री
जिण खेच्यो
फळ आवै आप
आवै ज्यूं-
बटाऊ घरां