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पेंसिल-2 / जयंत परमार
Kavita Kosh से
मेरी बच्ची
प्यारी-सी नन्हीं बच्ची
शार्पनर से
सुलगाती है इक पेंसिल
सफ़ेद काग़ज़ के आकाश में
रौशनी फैलने लगती है--
पेड़ को लेकर उड़ती काली चिड़िया
मोर की आँखो पर चश्मा
हवा में उड़ता अग्निरथ
सड़क पर चलता एरोप्लेन
गाय से बातें करता बाघ
काले दरख़्त पे
एक आँख वाला सूरज
उस पर बादल का टुकड़ा
बादल के माथे पर उड़ती नीली मछली
झरने की लहरों पे तैरती पीली तितली
मेरी प्यारी-सी बच्ची
अपनी मस्ती में क्या-क्या
खींच रही है तस्वीरें!
लेकिन जब भी
स्कूल का मास्टर
होमवर्क देता है उसको
मेरी प्यारी-सी गुड़िया
अकसर यूँ ही ग़ुस्से में
नोक तोड़कर रख देती है
और पेंसिल की मोमबत्ती बुझ जाती है
सफ़ेद काग़ज़ के आकाश में
रह जाता है सिर्फ़ धुआँ!