पेटीकोट / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय
नहीं उतारा मैंने अपना पेटीकोट
दरोगा ने बैठाये रखा
चार दिन चार रात
मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी तीन साल की बच्ची अब तक मेरा दूध पीती थी
भूखी रही घर पर
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी चौसठ साल की माँ ने दिया उस रात
अपना सूखा स्तन मेरी बिटिया के मुंह में
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट ।
नक्सल कहकर बैठाया रखा चार दिन चार रात
बोला, 'बीड़ी लेकर आ'
बीड़ी का पूड़ा लेके आई
'चिकन लेके आ रण्डी'
चिकन ले के आई
'दारू ला'
दारू लेके आई ।
माफ़ करना, मेरे क्रान्तिकारी दोस्तो !
मैं सब लाई, जो जो दरोगा ने मंगाया
मेरी बिटिया भूखी थी घर पर ।
दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट
मैं उसके मुंह पर थूक आई
भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी पिण्डली पर
मगर मैंने उतारा नहीं अपना पेटीकोट ।
पेटीकोट-२
आपने बताया है
आदिवासी औरत पेटीकोट नहीं पहनती
आदिवासी औरत पोल्का नहीं पहनती
एक चीर से ढँक लेती है शरीर
आप सर, आप मेडम
आप सदियों से नहीं आए हमारे देस
आपने कहा — बैठा नहीं सकता कोई दरोगा
किसीको चार दिन चार रात थाने पर ।
आप सर, आजादी से पहले आए होगे
हमारे गाँव
वो आजादी, जो आपके देश को मिली थी १९४७ में ।
आप नहीं आए हमारे जंगल
आपको नहीं पता पखाने न हो
तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम
कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है
पर लाता है, लात मारता है, पर रोटी लाता है
रोटी है तो दूध है
दूध है तो मेरा बच्चा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो पूछते क्यों — औलाद से माया रखती है दोपदी
क्या करेगा तेरा बच्चा
भूखा दिन काटेगा, जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती
ये जंगल बचाएगा ये जानवर बचाएगा
ये गोली खाएगा ये किसी आदिवासन को
लेकर भाग जाएगा
यहीं हमारी रीत है
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती कि जो लोग आते है आपकी तरफ से
उनकी निगाह बड़ी लम्बी है
आप एक चीर से शरीर ढाँकने की बात करते हो
हम पेटीकोट पोल्के में नंगे दिखते है
आप जरूर ही नहीं आए हमारे गाँव ।