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पेटी में दो छेद ज्यादा / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
कहते हैं कमाने लग जाए कोई ज्यादा तो
खाने नहीं लग जाता ज्यादा
ऊल जलूल खर्चे जरूर बढ़ा लेता है
ऐशो आराम का उदरस्थ हुआ सामान दिखने लगता है
धारे न धरता भार पतलून का
जो ऊंची चीज होते हैं इस हलके में
गैलेसों के सहारे पतलून को कांधे पर टांगे लेते हैं
साहबों की औलाद
उनकी पैंट कभी नहीं गिरती
भले पूरी पृथ्वी को हड़प कर जाएं
लस्टम पस्टम चलने वाला
पतलून को उचकाता ही रह जाता है
पेट तोंद हुआ जाता
हवा ही हवा का गुब्बारा बेचारा
पचपन की उमर के आते आते
पेटी में पड़ गए दो छेद क्या ज्यादा
दिखते कम हैं भीतर गड़ते ज्यादा
मुंह चुराता फिरता है खुद से ही
अभी अभी प्रोमोशन पाया बाबू शर्म का मारा.