भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ों के क्या कहने / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
पत्तों के कपड़े पहने
हैं फूलों के गहने
पेड़ों के हैं ठाठ बड़े
पेड़ों के क्या कहने।
धूप-चांदनी दोनों में ही
भैया, ये खुश रहते
फ़ुर्र फ़ुर्र उड़ती चिड़िया से
जाने क्या-क्या कहते।
भरी फलों से झोली
रस के बहते हैं झरने!
छाया देते ठंडी ठंडी
छतरी ये बन जाते
झूम हवा में पत्तों की
भई, ताली ख़ूब बजाते।
धरती की पुस्तक के-
लगते हरे-हरे पन्ने!