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पेड़ सड़कों के किनारे / कुमार रवींद्र
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पेड़ सड़कों के किनारे
थके-हारे
गूँजते हैं बस-ट्रकों के शोर
काँपते हैं जंगलों में मोर
यात्राएँ बिन-विचारे
टहनियों की नींद जाती खुल
बोझ से जब थरथराते पुल
डूब जाते हैं शिकारे
नीड़ में हैं पंख सेते साँझ
सिर्फ़ मिलती हैं हवाएँ बाँझ
छपे सूरज और तारे