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पेड़ / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
धरती, लोगों की अति सह रही है
प्यास से मर रही है
फिर भी चिंता पेड़ की कर रही है
वह हो रहा है कमज़ोर
फल भी हो रहे हैं कम
धरती चाह रही है जितना हो सके
पेड़ को पानी पहुचांए, उसे कुछ हो न जाये
चिंता तो पेड़ को भी है
लोग उसे दानी कहना न छोड़ दें
जिन किताबों में
उसकी प्रशंसा के फूल-कसीदे काढ़े गए थे
उनके पन्ने ने मोड़ दें, उसकी महिमा गाना न छोड़ दें
असलियत जान जायेंगे
तो धरती के गुण गायेंगे
पर आज सारे डर
नाम की कशमकश भुलाकर पेड़
धरती को लुटा रहा है सर्वस्व
इस तरह शुक्रिया अदा कर रहा है पेड़ ?
कि धरती के लिए
धरती के साथ ही मर रहा है पेड़।