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पेशावर के बच्चों के प्रति / प्रदीप त्रिपाठी
Kavita Kosh से
बच्चों ने नहीं पढ़ी थी
कोई ऐसी मजहबी किताब अथवा धर्म-ग्रंथ
जिसमें लिखा हो
बम, बारूद और बंदूक की गोलियों की अंतहीन कथा
ऐसी कोई भी किताब नहीं पढ़ी थी
बच्चों ने
जिसमें दर्ज हो क्रूरता, हत्या और बलात्कार
बच्चों ने नहीं बूझी थी ऐसी कोई जिहादी-पहेली
जिसमें धर्म की आड़ में
नफ़रत को पैदा किया जा सके
ऐसा कुछ भी नहीं सीखा था
इन बच्चों ने
बच्चों में बहुत भय था
सिर्फ इसलिए कि
बच्चे जानते थे
वे बेकसूर हैं।