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पैग़ाम दिया है कभी पैग़ाम लिया है / 'हफ़ीज़' बनारसी
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पैग़ाम दिया है कभी पैग़ाम लिया है
आँखों से मुहब्बत में बड़ा काम लिया है
गुज़रा है जो बे खौफ़ गुज़रगाहे-तलब से
मंज़िल का तलब उसने बहर गाम लिया है
जब ज़िक्र छिड़ा है मेरी बर्बादी-ए-दिल का
दुनिया ने मेरे साथ तेरा नाम लिया है
ये बात अलग है कि ख़ता किस से हुई थी
दीवानों ने सब अपने सर इलज़ाम लिया है
मज़बूरी-ए-हालात ने वह दिन भी दिखाए
ज़हराब से लुत्फ़े-मये-गुलफ़ाम लिया है
याद आये जो गुज़रे हुए लम्हाते-मुहब्बत
वह चोट पड़ी है कि जिगर थाम लिया है
हर सुबह किया तर्के–तअल्लुक़ का इरादा
हर शाम मगर हमने तेरा नाम लिया है
हूँ तिश्ना 'हफ़ीज़' आज तक इस जुर्म के बायस
साक़ी की नज़र से कभी इक जाम लिया है