पैदा जब अपनी फ़ौज में गद्दार हो गए
कैसे कहूं कि फ़तह के आसार हो गए
आंधी से टूट जाने का खतरा नजर में था
सारे दरख्त झुकने को तैयार हो गए
तालीम, जहन, ज़ौक, शराफत, अदब, हुनर
दौलत के सामने सभी बेकार हो गए
हैरान कर गया हमें दरिया का यह सलूक
जिनको भंवर में फंसना था, वो पार हो गए
आसूदगी, सुकून मयस्सर थे सब मगर
ज़ंजीर उसके पांव की दीनार हो गए
सर्वत किसी को भी नहीं ख्वाहिश सुकून की
अब लोग वहशतों के तलबगार हो गए