भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैनावो / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैंट-बुसरट पैर्यां
सै‘र री सड़क माथै चालता
‘रोबोट‘ जिस्या मिनखां बिचाळै
अेक धोती-कुड़तै आळै नै
देख्यां
ठंडी पून रो रूळो सो बै‘ग्यो
सा‘रकर