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पैसा / कहें केदार खरी खरी / केदारनाथ अग्रवाल

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पैसा
दिमाग में वैसे
सुअर
जैसे हरे खेत में

बाप
अब बाप नहीं
पैसा
अब बाप है

पैसे
की सुबह
और
पैसे
की शाम है

दुपहर की भाग-दौड़ पैसा है
पैसे के साथ पड़ी रात है

रचनाकाल: ३०-०१-१९६९