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प्यारे लाल के लिए विदा-गीत / भगवत रावत

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प्यारेलाल के लिए विदा गीत

कोई नहीं
जो नब्ज़ पर हाथ धरे
जिये या मरे

प्यारेलाल

नहीं किया कुछ तब
जब जवान थे
भाग दौड़ सकते थे
भर लेते घर उस समय
थोड़ी देर को

धर देते लोक-लाज
कोने में

झुक जाते थोड़ा सा
झुके-झुके ऊपर उठकर
झंडे सा फहराते

डरे क्यों नहीं
क्यों हरे बाँस से खड़े रहे

बेहद अकेले हो इस समय
कोई नहीं है पास
कहाँ गये दोस्त यार
क्या हुआ
सबको अपना समझने का

भरम खा गये

छूट गये सब रिश्ते
सब कटकर निकल गये
पता नहीं चला
कब चलते-चलते
सूनी सड़क पर आ गये

समझ से नहीं लिया काम
ठीक-ठीक
किया नहीं हिसाब
भाषा पढ़ते रहे
गणित में गच्चा खा गये

अकेले बलबूते पर

उम्र भर लड़े

किसी ने नहीं दिया साथ
क्रोध में निकली गालियों को हर तकलीफ़ की

दवा समझते रहे

और
असली दुश्मन पहचानने में

चूक गये

मंच पर अकेले
फिरते रहे निहत्थे

जोश में भरे-भरे

गिरे
तो हर बार
मत पेटी में गिरे
सुखी हो जाओ
यह तो कहेंगे लोग
मत
दान कर
मरे
प्यारेलाल

दुखी मत होओ
यह दुखी होने का समय नहीं
तुम्हें शान्ति चाहिए
तो ऐसे समय में
गीता का प्रसिद्ध श्लोक

याद करो

और
खुशी-खुशी मर जाओ

तुमने तो किया था कर्म
फल जिसने चाहा था

उन्हे मिला

प्यार जो किया तुमने
सारी दुनिया से

जी खोलकर

किसी ने कहा तो नहीं था तुमसे

खुद से क्यों नहीं किया
तो फिर अब
इस तरह मत मरो
प्यार से मरो

प्यारेलाल

चलो

देर मत करो
देखो
तुम्हारे रथ के घोड़े

बाहर हिनहिना रहे हैं

सारी तैयारी है
बड़े-बड़े लोग

परेशान हैं
तुम्हारे गुण गाने को

नियम के मुताबिक
तुम्हारे जीते जी वे
ऐसा नहीं कर सकते
देरी करने से कोई लाभ नहीं
उनकी मजबूरी समझो
जल्दी करो
मरो

मरो
प्यारेलाल।