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प्यार-वफ़ा से जिनको रग़बत होती है / ओंकार सिंह विवेक

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प्यार-वफ़ा से जिनको रग़बत होती है,
वो क्या जानें कैसी नफ़रत होती है।
 
बैठें दो पल माँ-बापू के पास कभी,
बच्चों को कब इतनी फ़ुर्सत होती है।
 
करते हैं ताज़ीम हमेशा जो सबकी,
उन लोगों की जग में इज़्ज़त होती है।
 
सबमें केवल नुक़्स निकाला करते हैं,
कुछ लोगों की कैसी आदत होती है।
 
रहते हैं हर वक़्त क़रीब गुलाबों के,
काँटों की क्या अच्छी क़िस्मत होती है।
 
साँप बना देते हैं पल में रस्सी का,
कुछ लोगों की ऐसी फ़ितरत होती है।
 
रोक सके जो राह 'विवेक' उजाले की,
ज़ुल्मत में कब इतनी हिम्मत होती है।