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प्यार करने की उम्र में लड़कियाँ / ज्ञान प्रकाश चौबे

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बसन्त के किसी मोड़ पर
ठहरी हुई उम्र के साथ
लान के पौधों में
फूलों के आने के इन्तज़ार में
अपने बालों में
उड़ती हुई पतंगे उलझाए
बेख़बर लड़की
चुप आकाश की गोद में
सोए हुए तारों के बीच खड़ी है

पुराने काफ़ी-हाउस की महक में लिपटी
किसी शाम की याद में
लड़की तैर रही है
लिफ़ाफ़े के जामुनी आकाश में
उसके अनचिह्ने सपनों को
अपनी चोंच में दबाए सिरगोटी
मेंहदी के झाड़ पर फुदक रही है

लड़की उतर रही है
डायरी के कुछ पन्नों में लिपटी
बर्फ़ की नर्म तलहटी में
बिछी हुई उजास पर
क़दम-दर-क़दम रखती हुई लड़की
बदल रही है
धूप की टुकड़ियों में
बिखर रही है
जंगली घास के सफ़ेद फूलों पर
ओस बनकर

वो पूछती है
माँ तुमने गुज़ारी कोई शाम
या कोई दुपहरी
किसी पार्क की सुनसान बेंच पर
चुप किसी आँख में झाँकते
भीगते हुए बरसात में
यूँ ही सड़कों को नापते हुए
देखते हुए ज़मीन को
आकाश की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए

या कि पिता
कोई शाम बिताई तुमने
शब्दों से परहेज करते हुए
किसी रेस्टोरेण्ट के कोने वाली सीट पर
बजाते हुए चम्मचें
गुनगुनाते किसी पुरानी फ़िल्म का
कोई रोमाण्टिक गाना

बताओ ना दीदी
प्यार करने की उम्र में लड़कियाँ
मेरी तरह होती हैं
या मेरी तरह लड़कियाँ
इस उम्र में करती हैं प्यार