प्यार का क़द / महेश सन्तोषी
प्यार का क़द जो भी हो, उसका सम्मान ही करता है मन,
तुम्हारे प्यार को एक हादसा कहकर, मैं तुम्हें अपमानित नहीं करूंगा।
वो कोई और नहीं था, जो फूलों के लिबास ओढ़े था,
मेरी उम्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा, वर्षों तक तुम्हारे नाम था।
ऐसा लगता था जैसे घर में आकर ठहर गयी हो,
उन दिनों फूलों के शहर में, हमारी एक गली थी,
जिसका एक-एक फूल हमें पहचानता था!
एक सुखद सत्य तुमने जिया भी और सहजता से भुला भी दिया,
उसे न आगे साँसें दीं, न यादें दीं, न कोई अर्थ दिया?
तुमने भावनाओं को सीमा दी, पाँव या पंख नहीं दिया!
अतीत के प्यार को अतीत में ही, समय पर दफ़ना दिया।
तुमसे जुड़ी पीड़ाओं को, मैं प्राणों में प्रवाहित रखूंगा, न रखूंगा;
पर, मैं उन्हें आँसू में प्रवाहित नहीं कर सकूंगा।
तुम्हारे प्यार को एक हादसा कहकर,
मैं तुम्हें अपमानित नहीं करूंगा।