Last modified on 3 मार्च 2011, at 06:21

प्यार का ही पर्याय / आलोक श्रीवास्तव-२

वह लड़की अपने बचपन को
याद करते हँसती थी
और मैं एक दुख देखता था
उसकी आँखों में

यह देखना ही मुझे प्यार करने की
शक्ति देता था
उसका रूप नहीं

वह इस प्यार को समझ नहीं पाती थी
पर हर मिलने के बाद
परिचय गहरा होता जाता था

यह दोस्ती थी -
प्यार का ही पर्याय
उसका विरुद्ध नहीं ।