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प्यार की इकाई / राजेश चड्ढा

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आंखों में उतारो, तो मुझे थाह मिले,
तुम ये नज़रें चुराना छोड़ते क्यूं नहीं?
आह का भी स्वर है, सुनो-सुनाओ ,
तुम ये एकांत, आख़िर तोड़ते क्यूं नहीं?
खिल उठे केसर-क्यारी सा मन ,
तुम ये ख़ुश्क रुसवाई तोड़ते क्यूं नहीं?
सध गया रिश्ता, अब तोड़ दो मौन,
अकेले-पन की ढ़िठाई छोड़ते क्यूं नहीं?
एकाकी जीवन में दूसरा, अपना ही है,
तुम ये प्यार की इकाई तोड़ते क्यूं नहीं?