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प्यार की क़िताब / निज़ार क़ब्बानी

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तुम्हारा प्यार
पराकाष्ठा है प्यार की, गूढ़ से गूढ़तम ;
है इबादत अपने आप में ।
जन्म और मृत्यु की तरह
नामुमकिन है इसका दुहराव ।
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सच है सब जो कहते हैं वे मेरे बारे में ;
प्यार में मेरी शोहरत के बारे में
स्त्रियों के साथ के बारे में जो कहते हैं वे
सच है सब,
लेकिन वे नहीं जानते तो बस यह
कि तुम्हारे प्यार में लहूलुहान हूँ मैं
ईसा मसीह की तरह ।
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फ़िक्र मत करो, सबसे हसीं
हमेशा मौजूद रहोगी तुम मेरे शब्दों में मेरी कविताओं में ।
उम्रदराज़ हो सकती हो तुम समय के साथ
मेरी रचनाओं में रहोगी मगर यूँ ही ।
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काफ़ी नहीं है तुम्हारी पैदाइशी ख़ूबसूरती
मेरी बाँहों से होकर गुज़रना था तुम्हें इक रोज़
ख़ूबसूरत से भी ज़्यादा होने को ।
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जब सफ़र करता हूँ तुम्हारी आँखों में मेरी जान,
जैसे सवार होता हूँ किसी जादुई कालीन पर ।
एक गुलाबी बादल उठा लेता है मुझे
और फिर एक बैगनी बादल ।
चक्कर काटता हूँ तुम्हारी आँखों में प्रिय ;
चक्कर काटता हूँ... पृथ्वी की तरह ।
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कितनी मिलती-जुलती हो तुम एक छोटी-सी मछली से,
डरपोक प्यार में... किसी मछली की ही तरह।
लेकिन हज़ारों स्त्रियों को मारकर मेरे भीतर
तुम बन बैठी हो मलिका ।
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उतार फेंको अपने कपड़े
सदियों से करिश्मा नहीं हुआ कोई इस धरती पर ।
उतार फेंको... निर्वस्त्र हो जाओ,
गूंगा हूँ मैं ।
और तुम्हारी देंह जानती है दुनिया की सारी भाषाएँ ।
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जब प्यार करता हूँ मैं
बन जाता हूँ समय
समय से भी परे ।
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हवा पर लिखा मैंने
नाम अपने प्यार का ।
पानी पर लिखा उसका नाम ।
जानता कहाँ था मैं
कि हवा बह जाती है बिना सुने,
और पानी में घुल जाते हैं नाम ।
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तुम अब भी पूछती हो मेरा जन्मदिन
लिख लो इसे,
जान लो ठीक-ठीक
जिस दिन क़ुबूल किया तुमने मेरा प्यार
उसी दिन हुआ मेरा जन्म \
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अगर जिन्न कभी आ जाए
बोतल से बाहर और पूछे
"क्या हुक्म है मेरे आका !
एक मिनट में चुन लीजिए
दुनिया के सारे कीमती हीरे-जवाहरात,"
मैं चुनूँगा सिर्फ़ तुम्हारी आँखें ।
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अपने प्यार में पिघला दी मैंने सारी क़लमें -
नीली... लाल... हरी...
जब तक कि ढल नहीं गए शब्द ।
मैंने फाख़्तों के कंगन पर जड़ दिया अपना प्यार
जानता नहीं था
कि दोनों उड़कर चले जाएँगे दूर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल