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प्यार की बस्ती बसाना चाहते हैं / राम नारायण मीणा "हलधर"

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प्यार की बस्ती बसाना चाहते हैं
नफ़रतों के घर जलाना चाहते हैं

लोग कहते हैं हमें वो हो गया है
बेवज़ह भी मुस्कुराना चाहते हैं

चंद पन्ने क्यों जले हैं डायरी के
कौनसे शोले छुपाना चाहते हैं

दो घड़ी मिल बैठ कर क्या हँस लिए हम
लोग सदियों तक रुलाना चाहते हैं

आपसे नज़रें मिलाकर मिल सकें कल
इसलिए नज़रें बचाना चाहते हैं

शहर में कर्फ़्यू का डर है जी वगरना
हम पतंगे भी लड़ाना चाहते हैं

काश मिल जाती वफ़ा बाज़ार में तो
लोग धन-दौलत लुटाना चाहते हैं