प्यार न होगा / गोपालदास "नीरज"
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा !
मणियों में तुम ही तो कौस्तुभ
तारों में तुम ही तो चन्दा,
नदियों में तुम ही तो गंगा
गन्धों में तुम ही निशिगन्धा,
दीपक में जैसे लौ-बाती,
तुम प्राणों के संग-संगाती,
तन बिछुड़े तो बात न कोई
तुम बिछुड़े सिंगार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
व्योम नहीं यह, भाल तुम्हारा
धरा नहीं है धूल चरण की,
सृष्टि नहीं यह लीला केवल-
सृजन-प्रलय की प्रलय-सृजन की,
तन का, मन का, जग-जीवन का
तुमसे ही नाता इन-उन का,
हम न रहें तो बात न कोई
तुम न रहे संसार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
पूनम गौर कपोल बिराजे
अधर हँसें ऊषा अरुणीली,
कुन्तल-लट से लिपटी संध्या
श्यामा अंजन-रेख नशीली,
सरि-सागर, दिशि भू-अम्बर
तुमसे ही द्युतिमान चराचर,
रवि न उगे तो बात न कोई
तुम न उगे उजियार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
तुम बोले संगीत जी गया,
तुम चुप हुए, हुई चुप वाणी,
तुम विहँसे मधुमास हँस उठा,
तुम रोये रो उठा हिमानी,
जन्म विरह-दिन, मरण मिलन-क्षण,
तुम ही दोनों पर्व चिरन्तन,
दृग न दिखें तो बात न कोई,
तुम न दिखे दरबार न होगा !
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा !
तुमसे लागी प्रीति, बिना-
भाँवर दुलहिन हो गई सुहागिन,
तुमसे हुआ विछोह, मृत्तिका-
की वन्दिन हो गई अनादिन,
निपट-बिचारी, निपट-दुखारी,
बिना तुम्हारे राजकुमारी,
मुक्ति न मिले, न कोई चिन्ता,
तुम न मिले भव पार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई,
तुम रूठे तो प्यार न होगा।