Last modified on 11 जुलाई 2011, at 20:48

प्यार में / स्मिता झा

तुम्हारे भीगे शब्द
मेरे मन की गहराइयों में
गूँजते हैं
इस तरह
कि जैसे गूँजती हैं
चीड़ों को भेदती तेज हिमानी हवाएँ.............!
तुम्हारी भीगीं चाहतों का
मूक निमन्त्रण
मेरी सुरमई
आँखों में
छलकता है
इस तरह
कि जैसे खनखन छलकता है
फेनिल रंग में डूबे झरनों का निनाद.............!