भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार सच्चा है हमारा इसमें हैं गहराइयाँ / शोभा कुक्कल
Kavita Kosh से
प्यार सच्चा है हमारा इसमें हैं गहराइयाँ
इक तिरी रहमत की देरी है हमारे साइयाँ
ऐ ख़ुदा कुछ भी नहीं है तेरी नज़रों से निहां
वो हमारे कारे-बद हों या कि हों अच्छाइयाँ
हम नहीं जो ऐब ढूंढे दूसरों में हर घड़ी
अपनी नज़रों में तो रहती हैं सदा अच्छाइयाँ
बीज बो दो प्यार का नफ़रत कदूरत छोड़ दो
दिल में हों हर इक बशर के नेकियाँ अच्छाइयाँ
आशियाना जल गया, खुशियां कहीं गुम हो गईं
रह गया साया ग़मों का, क्या बजें शहनाइयाँ
वक़्त है उसको संवारो, है हुनर तुम में अगर
ता न हों महसूस ढलती उम्र में तन्हाइयाँ।