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प्यार / केदारनाथ अग्रवाल
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प्यार कहीं पत्थर के भीतर है जमा हुआ,
सदियों से छिपा हुआ;
प्यार कहीं झरने से झरता है खुला हुआ,
पानी में घुला हुआ;
प्यार कहीं बहता है नदियों-सा कूल तोड़,
चलता है लाज छोड़;
रचनाकाल: संभावित १९५७