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प्यार / दूधनाथ सिंह
Kavita Kosh से
स्तब्ध निःशब्दता में कहीं एक पत्ता खड़कता है।
अंधेरे की खोह हलचल के प्रथम सीमान्त पर चुप--
मुस्कुराती है।
रोशनी की सहमी हुई फाँक
पहाड़ को ताज़ा और बुलन्द करती है।
एक निडर सन्नाटा अंगड़ाइयाँ लेता है।
हरियाली और बर्फ़ के बीच
इसी तरह शुरू करता है-- वह
अपना कोमल और खूंखार अभियान
जैसे पूरे जंगल में हवा का पहला अहसास
सरसराता है।
तभी एक धमाके के साथ
सारा जंगल दुश्मन में बदल जाता है
और सब कुछ का अन्त--एक लपट भरी उछाल
और चीख़ती हुई दहाड़ में होता है।
डरी हुई चिड़ियों का एक झुंड
पत्तियों के भीतर थरथराता है
और जंगल फिर अपनी हरियाली में झूम उठता है।