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प्यार / मुनेश्वर ‘शमन’

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प्यार कहऽ हइ जेकरा दुनिया,
नञ हे मिलन ई, तन से तनके।
मिलन रे मितवा, ई तन-मन के।

खुलल-खिलल मह मह मउसम में,
रूप-रंग ललचावय पल-पल।
पास-पास आ जाहे खिंचा के,
जियरा में जब होबय हलचल
अइसन में तो जगिये जा हइ,
चाह तो मिठगर आलिंगन के।
कुछ नञ, हे ई आँच जीवन के।

देह थाम के चलइत रहइ में,
उमरो भर सुख-सान्ति कहाँ हे।
जी में कहँइ जो दूरी बसल हो,
अकुलाहट अउ दरद उहाँ हे।
लोक-लाज के निरबाहे में,
पल-छिन कटइत रहय जीवन के।
बुझल-बुझल-सन असर छुअन के।

मेल हो दिल के दिल से अइसन,
भेद कोय भी रह नञ पावे।
तनिक आस्स-बिसवास न बिखरे,
नेह-छोह नित रस बरसावे।
सपना सदा रहय हरीआवइत,
बस एतने हो काम जतन के,
रंगोली चमकय आँगन के।