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प्यास कोई लौट जाए सिर्फ तट को चूमकर / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
प्यास कोई लौट जाए
सिर्फ तट को चूमकर
और तह तक
कांप जाए झील
जैसे तुम!
शाम की बांहों के सागर में
तिरे मन को
कोई इतना डुबो जाए
सूर्य की पहली किरण आए
नदी में पाँव की
पाजेब धो जाये
उतर कर नभ से कोई पक्षी
भिगोये पंख भर
और तह तक
कांप जाए झील
जैसे तुम!
इस तरह से निर्वसन
फूलों पे सोई,
गंध के सपने हुए हैं हम
जिस तरह से
पास काफी पास है,
प्यासे हिरण की
आँख से शबनम।
फेंक दे शायद
कोई कंकड़
किसी के नाम पर,
और तह तक
कांप जाए झील
जैसे तुम!