प्यास जगी थी होकर बेकल चले गए
हिरना थे वे बेहद चंचल चले गए
दिशा-दिशा पसरा था मरुथल
रास नहीं आया यह जंगल चले गए
दिन धुँधलाए रातें काली-काली हैं
वे दिन-रैना उज्ज्वल-उज्जवल चले गए
प्यासी धरती ने कितनी मनुहारें कीं
एक-एक कर सारे बादल चले गए
नया दौर है गजरे-जूड़े विदा हुए
कजरारी आँखों से काजल चले गए
कितना रुकते और प्रवासी पंछी थे
मौसम बदला वे दल के दल चले गए