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प्यास मिली केवल बस्ती को / अवनीश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
घोर निराशाओं का जँगल,
प्यास मिली केवल बस्ती को
चुप बैठो, मत कहो किसी से!
हथकण्डों की मायानगरी
खण्डित आशा-रिश्ते-नाते
रंग-बिरंगे झंडे-बैनर
सपनों का हर महल ढहाते,
मीट्रिक टन-क्विंटल ने आख़िर
कुचल दिया माशा-रत्ती को
चुप बैठो, मत कहो किसी से!
टूटी खटिया पर नेता जी
बैठ रहे हैं जान-बूझकर,
खेत और खलिहान झूमते
बोतल,वादे,हरी नोट पर,
टुन्न पड़ा है रामखिलावन
कैसे समझायें झक्की को
चुप बैठो, मत कहो किसी से!
लोकतंत्र या राजतन्त्र यह
स्थिति बद से भी बदतर है,
प्रश्नों के जाले में उलझा
संविधान का हर अक्षर है,
हत्यारी हो गईं हवायें
नोच रहीं पत्ती-पत्ती को
चुप बैठो, मत कहो किसी से!