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प्यास से जो खुद़ तड़प कर / कमलेश भट्ट 'कमल'
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प्यास से जो खुद़ तड़प कर मर चुकी है
वह नदी तो है मगर सूखी नदी है।
तोड़कर फिर से समन्दर की हिदायत
हर लहर तट की तरफ को चल पड़ी है।
असलहा, बेरोज़गारी और व्हिस्की
ये विरासत नौजवानों को मिली है।
जो नज़र की ज़द में है वो सच है, लेकिन
एक दुनिया इस नज़र के बाद भी है।
जुल़्म की हद पर भी बस ख़मोश रहना
ये कोई जीना नहीं, ये खुद़कुशी है।