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प्यास / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
समुद्र किसका करता है इंतजार
अथाह होता है उसके पास
फिर भी करता रहता है चीत्कार
उत्ताल तरंगें मानो असंख्य आतुर बाहें
पुकारती हैं किसे लगातार
किसे..... किसे... किसे
कितना पानी है उसके पास
फिर भी है वह निरा मरुस्थल
रहता है आतुर
दो बूंद मीठे पानी के लिए
विशाल सागर की नहीं ही
बुझती है प्यास
उसे लगातार रहती है एक और नदी की आस