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प्रकृतिक विषय मे / राजकमल चौधरी

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कवि कोकिल कहैत छलाह, मदालसा ई प्रकृति छथि कृष्णकामिनी
राधा, अदृश्य अकल्पनीय अलौकिक अथवा कोनो प्रकारेँ अज्ञेय
नहि छथि हमर काव्य-कन्या
प्रकृति
-तीनू काल, दसो दिशा, अठारहो सत्यसँ संयुक्त
चन्द्रमा, वसन्त, रेंची-तोरीक स्वर्ण-पीताम्बर पहिरने पृथ्वी बधू
मेघ, बरखा, इजोरिया, अकस्मात् खिड़की फोलिकय देखल गेल
नदीक ओहि पार ऊगल अछि सूर्य,
चन्द्रमल्लिका,
आ हमरा चारूकात पसरल ई नील-लोहित आकाश
हमर ई काव्यकन्या, हमर ई पृथ्वीवधू, हमर ई लौकिक आ दृश्य प्रकृति
हमर जीवनमे आ हमर कवितामे
जीवित छथि, जागल छथि
एहि नागरिक यान्त्रिक निरीह पशुवत् जीवनकेँ
कविता बनयबामे
हमरे जकाँ, हमरे कवि जकाँ लागल छथि, जागल छथि
प्रकृति

(आखर, राजकमल स्मृति अंक: मइ-अगस्त 1968)