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प्रक्रिया / अनिता भारती

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तुम जलाते हो
अवसरों की अंगीठी
और उसमें भूनते हो
दूसरों की
बेबसी लाचारी कमजोरी
उनसे उठती मानस गंध पर
तुम अट्टाहास लगाते हो
और ताकतवर होने का
दंभ पालते हो

हम जोडते हैं तिनका-तिनका
ताकि बन सके
एक प्यारा घौंसला
या फिर छायादार पेड़ के नीचे
एक आशियाना
जिसमें सब बैठ सके
सिर जोड़कर कर सकें
कुछ दुख- सुख की बातें
कुछ जंगल पहाड़ नदी नालें
अमराइयों की बातें
छाया- प्रतिछाया, बिम्ब-
प्रतिबिम्ब की बातें

साधारण होने की प्रक्रिया से
गुजरना चाहते हैं हम
बेखौफ बेलौस
जीना चाहते हैं हम
तुम्हारे घृणित
अट्टाहासों के बरक्स
हम खिलखिलाकर हँसना चाहते हैं

हम अपनी हँसी से
एक ऐसी दुनिया रचना
चाहते हैं जहाँ
किसी के हैसियत का टिकट
न कटता हो
किसी हैसियत वाली टिकट-खिड़की पर
बस जहाँ मेरी तुम्हारी
हम सबकी हँसती आँखों का
स्वप्न पलता हो ।