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प्रजातन्त्रभवन / सोमदेव

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1
ठाढ़े ठाढ़ देखैत रहि गेलाह धृत्तराष्ट्र। आ खसैत रहल
प्रजातंत्रक लाक्षागृह। बरकैत रहल संविधान। टूटैत रहल
ठीकेदारीक खाम्ह। पगहा तोड़ैत रहलाह जातिबद्ध पशु।
गोठुल्ला नांघैत रहलाह विधायक। आ भोकरैत रहि गेल शिखण्डी चरवाह।
चहरदेवारी लग मतदाताक आगाँ परेड करैत रहि गेलाह पाँचो पाण्डव
-असत्यवादी धर्मभीरू युधिष्ठिर
-नीलममात्ररधर वृहन्नला अर्जुन
-बाँहि फड़फड़बैत सहस्त्र बड़दक शक्ति लेेने भीम।
-फल्गू कातमे अहुरिया कटैत नकुल।
-आ वाणप्रस्थ सहदेव।
मुदा उदास-उदास किए छथि पाण्डव-समर्थक कौरव-समुदाय ?
कौखन क’ सुना दैत छथि अपन काक-काकली।
साहित्यज्ञ राजनीतिक विदुरकें भ’ रहलनि आश्चर्य
जे एकलव्यक खोज करैत पुरोहित द्रोणाचार्य
अभिषेक क’ रहल छथि कर्ण केर। राष्ट्रपिताक मूर्तिक समक्ष
शपथ ल’ रहल छथि कर्णसहित सतरहोटा नवांकुरित राज्यामात्यः
‘हमरा सभ आब मनुक्खे रहब। नहि बाजब फूसि। साक्षी अछि इतिहास। ओना
नहि भ’ रहल अछि विश्वास अपने पर, नहि जानि, पुनः पशु नहि भ’ जाइ !!’

2
प्रजातन्त्र भवनक समक्ष शहीद-स्मारक कें भग्न क’ रहल अछि एकटा भीड़। छपटि
रहल अछि नाक। आ जीह।...रक्तासव पीने एकटा भीड़, जाहिमे सभ केर।
सम्बन्ध छनि विदेशमे। कोनो ने काने एकटा सूत्र। ट्रान्समीटर। केमरा। विस्फोट।
मुदा आइ लगैछ जेना ई सातो टा कटल जीह एखन चिचिया उठत। आर
टोल-परोसक सूतल-अधसूतल बाट-बटोही, प्रजाजन, भारत भाग्यविधाता
उठि क’ पंचमार्गी एहि भीड़क टेढ़ हाथ काटि लेत। बहार क’ लेत नील आँखि।
आ तोड़ि देत विष-दाँत।
3
आह ! ताजमहलक तहखानामे वाजिद अली शाह केर कालीनक बखरा लगा रहल छथि
इंद्रविहीन शची।
आह ! समग्र देशमे पसरि रहल अछि सेठ गोलघरक एकाधिपति पेट।
आह ! बिना डाक बजने निलाम भ’ रहल अछि अपन ई प्रजातंत्र भवन।