तुम्हारे हाथ उठे जब–जब
आम आदमी के बहाने
हमने देखी खुली आँखों से
प्रजातन्त्र की नंगी तस्वीर
लूट हुई, दंगे हुए
बँटवारा हुआ इन्सानियत का
तुमने सिर्फ़ वोट बटोरे
फिर तुमने कमल खिलाया
कीचड़ का भी अपमान किया
आग लगाई
बस्तियाँ जलाई
देश में लहू की धार बहाई
दुहाई तुम्हारी दुहाई तुम्हारी