प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ? / नागेश पांडेय ‘संजय’

प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?
तुमको तो जाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
दर्द हमारा कौन सहेगा ?
तपते मरुथल में पुरवाई
के झोंके अब क्या आएँगे ?
रुँधे हुए कंठों से कोकिल
गीत मधुर अब क्या गाएँगे ?
तुमको तो गाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
अब उस लय में कौन बहेगा ?
यह कैसा बसंत आया है ?
हरी दूब में आग लगा दी !
निंदियारे फूलों की खातिर
उफ्! काँटों की सेज बिछा दी !
इसको अपनाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
आशाओं का महल ढहेगा।
एक बार फिर छला भँवर ने,
डूब गई मदमाती नैया।
एक बार फिर बाज समय का
लील गया है नेह चिरैया।
मन को समझाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?

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