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प्रणय के गीत मृदु पावन / अनामिका सिंह 'अना'

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सदानीरा बहे कल-कल, गगन पर चाँद तारे हैं।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर, सुभग मनहर नजारे हैं॥

उजालों ने चुगा शशि है, उषा आयी उगा रवि है।
मही पर पुष्प शुचि कुसुमित, उड़े नभ पर विहग प्रमुदित॥
झरे सित पुष्प शिउली के, हवाओं ने बुहारे हैं।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर, सुभग मनहर नजारे हैं॥

लली वृषभानु की राधा, ढके मुख घूँघटा आधा।
चली पनघट लिये गागर, खड़े हैं गैल नटनागर॥
हुयीं लखि लाज से दुहरी, मदन करते इशारे हैं।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर, सुभग मनहर नजारे हैं॥

प्रफ़ुल्लित सृष्टि लखि सारी, बँधे परिरंभ अभिसारी।
मनोहर दृश्य वृन्दावन, प्रणय के गीत मृदु पावन॥
रचायें रास बनवारी, भुरारे ही भुरारे हैं।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर, सुभग मनहर नजारे हैं॥