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प्रणय : जोसी ब्लिस-2 / पाब्लो नेरूदा

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हाँ, उन दिनों के लिए
बेशक, गुलाब है व्यर्थ।

कुछ भी नहीं,
एक आरक्त फूल के सिवा
उपजा था जो,
उस आग से
जो दफ्न थी ग्रीष्म से,
उसी पुराने सूरज से बरसती थी।

मैं
उस परित्यक्ता से
दूर भागा।

पकड़ से बचते हुए
एक नाविक की तरह
भागा

अरुण माहेश्वरी द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित