प्रतिउत्तर मे युद्ध मिल गए / विशाल समर्पित
जिन प्रश्नों का हल ही छल था, उनको पथ अनिरुद्ध मिल गए
हमने जब - जब नेह पुकारा, प्रतिउत्तर मे युद्ध मिल गए
झोला टँगा रहा कंधे पर, कुछ भी मेरा बिका नहीं
सारी दुनिया देख रही थी, किंतु तुम्हे कुछ दिखा नहीं
आँखो पर थी चढ़ीं ख़ुमारी, मन मंथन मे मुझे तुम्हारी
भाव-भंगिमा शुद्ध मिली न, और विचार अशुद्ध मिल गए
हमने जब - जब नेह पुकारा, प्रतिउत्तर मे युद्ध मिल गए
फिसलन वाली राहों पर हम, जितना संभले उतना फिसले
गीत गगन के कई ऋषि बस, बाहर - बाहर उजले निकले
सोच रहे थे वर माँगेंगे, सुप्त अवस्था को त्यागेंगे
पर कुटिया मे जब हम पहुँचे, ऋषिवर हमको क्रुद्ध मिल गए
हमने जब - जब नेह पुकारा, प्रतिउत्तर मे युद्ध मिल गए
कुछ भी नहीं अजर होता है, कुछ भी अविनाश नहीं होता
प्रिय कुछ खो जाने का मतलब, सर्वस्व विनाश नहीं होता
तुमसे मिलकर मैंने जाना, मै नगण्य था मैंने माना
तुम मिले तो अंगुलिमाल को, जैसे गौतम बुद्ध मिल गए
हमने जब - जब नेह पुकारा, प्रतिउत्तर मे युद्ध मिल गए