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प्रतिच्छाया / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
सफ़ेद चादर नीन्द की
उस पर झरते
हरे पत्तों से सपने
सपने मुझे
जीवन की आख़िरी तह तक
पहचानते हैं
जानते हैं वे
मेरी गुज़री उम्र के सभी
कच्चे-पक्के क़िस्से
बेर के लदे घने पेड़ को झकझोर कर
आँचल में बेरों को भर लेने के सपने
कई बार दिखाती है नीन्द
सपनों में
मेरी सीली आँखे,
नीन्द ने,
ली मेरी तरुणाई से
प्रेम में रपटने का क़िस्सा
सपनों ने दोहराया इतनी बार
कि अब वह
नींव का पत्थर बन चुका है
जीवन से कितने बिम्ब सींच लिए
नीन्द ने
और गूँथ लिया
उन्हें सपनों में
एक उम्र गुज़ार कर
मैंने भी जैसे सीखा है
नीन्द को
सफ़ेद चादर
और सपनों को
हरे पत्तों का
बिम्ब प्रदान करना