प्रतिज्ञा / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
भारत धर्मप्रधान, यहाँ के वासी धर्माचारी।
आदिकाल से रही मानती है यह संसृति सारी।।
देश-धर्म पर घटा संकटों की जब-जब घिर आई।
तभी सुरक्षा हित जन-जन ने अपनी जान लड़ाई।।
निराकार भगवान स्वयं होते साकार यहाँ पर।
राम-कृष्ण के हुए दिव्य पावन अवतार यहाँ पर।।
विप्र, धेनु, सुर, संत, धरा का दारूण दुःख मिटाया।
आतताइयों का विनाश कर धर्म-केतु फहराया।।
गोपालक बन कर यदुनन्दन थे गोपाल कहाए।
घर-घर में दधि-दूध और माखन के स्रोत बहाए।।
लुटा जा रहा आज उसी भारत का प्रिय गोधन है।
कैसी है दुर्दशा, देश का कितना घोर पतन है।।
जानबूझ कर भी सब कुछ हम यों अजान होते हैं।
है कितना अविवेक जागते हुए आज सोते हैं।
पाप बढ़ रहा पुण्य धरा पर हम करवट न बदलते।
पापी करते क़त्ल उसी का जिसके द्वारा पलते।
वीरों की संतान कहाते लज्जा हमें न आती।
माँ पर अत्याचार देा कर हाय! न फटती छाती।।
सच कहता हूँ अगर अभी हम सजग नहीं हो पाए।
हो चुकने पर सर्वनाश फिर क्या होगा पछताए।।
आओ मिल कर आज प्रतिज्ञा हम सब यही करेंगे।
गोधन होगा बंद नहीं हम तब तक चैन न लेंगे।।