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प्रतिद्वन्दी कवि से / अज्ञेय

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बन्धु! तेजपात की दो डालें पाने के लिए
तुम इतने उतावले होगे?
दाफ़ूनी को बावले प्रार्थी से बचाने के लिए
देवता ने उस की छरहरी देहलता को
तेजपात की झाड़ी में बदल दिया था :

अब तेजपात की डाली को
तुम्हारी आतुरता के संकट से छुड़ाने के लिए
उस ने कहीं दाफ़ूनी में बदल दिया...तो?
हम...हमारा तो क्या, हमारा गाँव
एक रूपसी युवती से सम्पन्नतर हो जाएगा...

पर तुम क्या करोगे?
बाला-तुम्हें भला उस की दरकार क्या?
या उसे तुम से सरोकार क्या?
और डाल तेजपात की-
तेज ही न रहा तो क्या बात पात की!

अक्टूबर, 1969

दाफ़ूनी : तेजपात; अपोलो का प्रिय वृक्ष होने के नाते चक्रवर्ती कवि को इस के पत्तों का किरीट पहनाया जाता था।