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प्रतिहिंसा / शंख घोष / रोहित प्रसाद पथिक

युवती कुछ नहीं जानती
सिर्फ़ प्रेम की बातें बोलती है

शरीर मेरा सजाया भी तुमने
बीते समय में…

मैंने भी प्रतिक्रिया में रखी सब बात,
शरीर भरकर उड़ेल दी है
तुम्हारे ऊपर—
अग्नि और प्रवणता ।

मूल बांग्ला से अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक