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प्रतीक्षारत / शेखर सिंह मंगलम
Kavita Kosh से
कुछ हज़ार दिनों की दवात में
संघर्षों की स्याही है
पीछे कुछ पन्नों पर
मैंने खुद लिखा है और
कुछ पन्नों पर अ-वश लिख दिया हूँ जबकि
मैं कभी नहीं चाहता था लिखना
पन्नों को कुरेदकर,
शेष पन्नों पर लिखने के लिए
नीले रंग में (ख़ून) मिलाना है ताकि
कुछ बचे हज़ार दिनों (की)
दवात की स्याही से लिख सकूँ
सब कुछ मनचाहा मगर
अ-वश भी लिखना होगा-जैसे
जन्म लेना दुर्घटना है
बाद मुक्ति की पुनः कामना,
ज़िन्दगी से घटना
मृत्यु की तरफ़ बढ़ना है
कुछ हज़ार बचे दिनों (की) दवात में
उम्मीदों की क़लम है
स्याही जब तक, तब तक चलना (फिर)
सबको ही मरना-
”किसी का मरना रुटीन तो किसी का ऐतिहासिक घटना है“
चुनाव सबका अपना-अपना लेकिन
दूसरा विकल्प कर्म की जलती गुफ़ा में प्रतीक्षारत है...