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प्रथम मासे अखंड काया, आसाढ़ जोजन जोरहीं / भोजपुरी

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प्रथम मासे अखंड काया, आसाढ़ जोजन जोरहीं
बूझि आगम-निगम प्रभुजी, हरिचरन पद गावहीं।।१।।
सावन सील-सुभाव सीतल, डीढ़ से मन में भरी
भाव प्रीत सुभाव सबसे.........कमल जल में जल रही ।।२।।
भादो भगति सजन चहुँ ओर, चपला चहुँ दिसि भरी
होति जाति प्रकास मंडल, कठिन जल भवसागर भरी।।३।।
आसिन आसा डीढ़ कड़के, जोग आसन साधु के
धीरे-धीरे गगने ऊपर, वसुरति डोर लगावहीं।।४।।
कातिक कम्पा कमल दो आदमी, जहाँ हंसा के बास है
चुनत मोती माँग सरवर, तनु लहरा तुरंग है।।५।।
अनन्वृझिमि झिमि वजत धन-धन, जीवज्ञ अगहन आवहीं
बिनु दीपक जीत जगमग, भवन सोभा पावहीं ।।६।।
पूस पूरन हरीचरण पग, चित्त चकोर लगावहीं
राम नाम आधार प्रभुजी, हरिचरन पद गावहीं ।।७।।
भृकुट व्याकुट बहुत संगम मकर माघ लहाहीं
शिव साधु समाधि आसन जोग ध्यान लगावहीं।।८।।
वराह जोत सुरूप निरगुन मस्त फागुन आवहीं
अंचल राजा के खंड मंडिल, त्रिपुल दल नव खंड है।।९।।
चड़त चंचल गउ चिन्ता, कि याइ दासा रूपका
चलत निसि गये सो आसा, निरखत मन रूपका।।१0।।
बइसाख साखा छाड़ि दिये भ्रम, छाड़ि दिये ब्रह्म जमु के फंद
कि मूल गहि के पार अउर रचना काल है।।११।।
जेठ जीव सम्हारु अपना, इहो अवसर दाव है
आनन्द बारहमास गाये, राम राम अधार है।।१२।।