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प्रबोध / महेन्द्र भटनागर

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नहीं निराश / न ही हताश!

सत्य है-
गये प्रयत्न व्यर्थ सब
नहीं हुआ सफल,
किन्तु हूँ नहीं
तनिक विकल!
बार-बार
हार के प्रहार
शक्ति-स्रोत हों,
कर्म में प्रवृत्ता मन
ओज से भरे
सदैव ओत-प्रोत हों!
हों हृदय उमंगमय,
स्व-लक्ष्य की
रुके नहीं तलाश!
भूल कर
रुके नहीं कभी
अभीष्ट वस्तु की तलाश!
हो गये निराश
तय विनाश!
हो गये हताश
सर्वनाश!