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प्रभाती - 2 / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
फूलों ने पाँखें खोली हैं
तुम भी अपनी आँखें खोलो।
ये धुल गई ओस के जल से
तुम भी अपनी आँखें धोलो॥
फूल खिले कितने सुन्दर हैं
तुम भी अब सुन्दर बन जाओ।
रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर
तुम भी एक फूल बन जाओ।
खिलो इन्हीं से, खेलो इनसे
ऐसे ही तुम हंसो हंसाओ।
अपनी गंध उड़ा कर तुम भी
फूलों जैसा गौरव पाओ।